Wednesday, September 26, 2012

नर हो न निराश करो मन को..

नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो, यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो, कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला, कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को, नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ, फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
...तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो, उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को, नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे, हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे, मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को, नर हो न निराश करो मन को ।

(मैथिलीशरण गुप्त)

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